हदीस1:
हज़रत ज़राअ रदीयल्लाहू अनहु से रिवायत है की वो फरमाते है की जब हम मदीना मुनव्वरह आए तो अपनी सवारियों पर से उतरने मे जल्दी करने लगे पस हम हुज़ूर अलैहिस्सलाम के हाथ ,पाऊँ शरीफ चूमते थे।(मिश्कात बाबुल मुसाफह वल मुआनकह अल फस्ल सानी)
हदीस2:
मिश्कात ने ब रिवायत अबु दाऊद और तिरमिजी से नकल किया की हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने हज़रत उस्मान बिन मजऊन रदीयल्लाहू अनहु को बोसा दिया हालांकि उनका इंतेकाल हो चुका था।काज़ी अयाज़ शिफा शरीफ मे हदीस नकल करते है-“ जिस मिंबर पर हुज़ूर अलैहिस्सलाम खुतबा फरमाते थे उस पर हज़रत अब्दुल्लाह इबने उमर रदीयल्लाहू अनहु अपना हाथ रख कर चूमते थे”इबने अबी मुसन्निफ़ यमनी जो की मक्का के उलमा-ए-सुफिया मे से है फरमाते है-“कुरान करीम और हदीस के अवराक और बुज़ुर्गाने दीन की कब्र चूमना जाइज़ है”अब अकवाल फ़िकह मुलाहिजा होफतावा आलमगिरी किताबुल करहिया बाब ममलूक मे है- “अगर आलिम और आदिल बादशाह के हाथ चूमे उनके इल्म व अदल की वजह से तो इसमे हरज नहीं”इसी आलमगिरी के किताबुल कराहिया बाब जियारतुल कुबूर मे है- “अपने माँ बाप की क़ब्र चूमने मे हरज नहीं”दुर्रे मुख्तार जिल्द पंजम किताबुल कराहिया बाब मुसाफह मे है-“आलिम और अदिल बादशाह के हाथ चूमने मे हरज नहीं”इसी किताब मे अल्लामा इबने आबिदीन शामी ने एक हदीस नकल की-“ हुज़ूर अलैहिस्सलाम ने उस शख्स को इजाजत दी उस ने आप के सर और पाऊँ मुबारक को बोसा दिया”अब इस पर एक एतराज़ आता है की पाऊँ का बोसा झुक के लेना पड़ेगा और ये सजदा गेरुल्लाह है लिहाजा हराम है?जी नहीं अव्वलन तो हम सजदे की तारीफ (definition) देख लेते है फिर सजदे के अहकाम फिर किसी के सामने झुकने का क्या हुक्म है इससे ये एतराज़ खुद ही दफा हो जाएगा।शरीयत मे सजदा ये है जिसमे जिस्म के सात अज़व (Body Parts) ज़मीन पर लगे। दोनों पंजे दोनों घुटने दोनों हाथ और नाक और पेशानी फिर उसमे सजदे की नियत भी हो क्यूंकी बेगैर सजदे की नियत के कोई शख्स ज़मीन पर औंधा लेट गया तो सजदा न होगा।
सजदा भी दो तरह का है सजदा-इबादत और सजदा-ए-ताजीमी
सजदा ताजिमी: तो वो जो किसी से मुलाक़ात के वक्त उसका किया जाए
सजदा इबादत: वो जो किसी को खुदा मान कर किया जाए।
सजदा-ए-इबादत गेरुल्लाह को करना शिर्क है किसी नबी के दीन मे जाइज़ न हुआ। सजदा-ए-ताजिमी हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से ले कर हुज़ूर अलैहिस्सलाम के जमाने के पहले तक जाइज़ रहा। फरिश्तों ने जो हज़रत आदम अलैहिस्सलाम को सजदा किया वो सजदा-ए-ताजिमी था। हज़रत याक़ूब अलैहिस्सलाम और हज़रत युसुफ अलैहिसलाम की बिरादरी ने हज़रत युसुफ अलैहिस्सलाम को सजदा किया।दुर्रे मुख्तार मे है –“ अगर ज़मीन चूमना इबादत और ताज़ीम के लिए हो तो कुफ्र है और अगर ताज़ीम के लिए न हो तो कुफ्र नहीं हाँ गुनहगार होगा और गुनाह-ए-कबीरा का मुर्तकीब होगा।“रहा गैर के सामने झुकना इसकी दो नीयतें है एक तो ये की झुकना ताज़ीम के लिए हो जैसे की झुक कर सलाम करना लेकिन ताज़ीम के लिए इतना झुकना की रुकु के बराबर झुक गया तो हराम है इसी को उलमा मना फरमाते है । दूसरा ये की झुकना किसी और काम के लिए हो जैसे अपने शेख का जूता सही करना हो या पाऊँ का बोसा लेना हो ये सब हलाल है और अगर जाइज़ न हो तो उन हदिसो का क्या जिसमे हुज़ूर अलैहिस्सलाम के पाऊँ मुबारक चूमने की दलील है। नीज़ ये सवाल देव बंदियों के लिए भी खिलाफ होगा क्यूंकी उनके पेशवा मौलवी रशीद अहमद गंगोही ने भी हाथ पाऊँ चूमना जाइज़ लिखा है।